सनातन धर्म अपने हिंदू धर्म के वैकल्पिक नाम से भी जाना जाता है। वैदिक काल में भारतीय उपमहाद्वीप के धर्म के लिये ‘सनातन धर्म’ नाम मिलता है। ‘सनातन’ का अर्थ है – शाश्वत या ‘हमेशा बना रहने वाला’, अर्थात् जिसका न आदि है न अन्त। सनातन धर्म मूलतः भारतीय धर्म है, जो किसी समय पूरे बृहत्तर भारत (भारतीय उपमहाद्वीप) तक व्याप्त रहा है। हिंदू जीवन के सभी पहलुओं, अर्थात् धन (अर्थ) अर्जित करना, इच्छाओं की पूर्ति (काम) और मुक्ति (मोक्ष) प्राप्त करना, को यहां "धर्म" के भाग के रूप में देखा जाता है।
धर्म एव हतो हन्ति धर्मो रक्षति रक्षितः
तस्माद्धर्मो न हन्तव्यो मा नो धर्मो हतोऽवधीत्॥
यह संस्कृत श्लोक मनुस्मृति के श्लोक 8.15 और महाभारत में आता है। इसका अर्थ है - जो लोग धर्म का विरोध करते हैं, वे नष्ट हो जाते हैं, जो इसका समर्थन करते हैं, उनकी रक्षा की जाती है। इसलिए, कभी भी नकारात्मक परिणामों का सामना न करने के लिए, किसी को कभी भी अपने धर्म के विरुद्ध नहीं जाना चाहिए। (यहाँ धर्म का अर्थ धर्म नहीं है, यह नैतिक कर्तव्यों और आचरण का एक दिव्य नियम है।)
श्लोक का अर्थ यह भी है कि जब व्यक्ति नैतिक मूल्यों के लिए खड़ा होता है और उनका बचाव करता है, तो बदले में वे उन्हीं सिद्धांतों द्वारा संरक्षित होते हैं जिनका वे पालन करते हैं। यह व्यक्ति के धार्मिक कर्तव्यों, सिद्धांतों और नैतिक मूल्यों को बनाए रखने के महत्व पर जोर देता है। कोई व्यक्ति धर्म को बनाए रखने को अपने भविष्य के लिए निवेश के रूप में भी देख सकता है।
विज्ञान जब प्रत्येक वस्तु, विचार और तत्व का मूल्यांकन करता है तो इस प्रक्रिया में धर्म के अनेक विश्वास और सिद्धांत धराशायी हो जाते हैं। विज्ञान भी सनातन सत्य को पकड़ने में अभी तक कामयाब नहीं हुआ है किंतु वेदांत में उल्लेखित जिस सनातन सत्य की महिमा का वर्णन किया गया है विज्ञान धीरे-धीरे उससे सहमत होता नजर आ रहा है।
सनातन हिन्दू धर्म में कुल कितने ग्रंथ हैं
सनातन धर्म यानि कि हिन्दू धर्म विश्व का सबसे प्रचीन धर्म है। हमारे ऋषि - मुनियों ने गहन शोध किये और कई ग्रंथ लिखे। वेद हिन्दू धर्म के मूल ग्रंथ हैं। इसके अलावा हिन्दू धर्म में उपनिषद , पुराण , मनुस्मृति, और भी ग्रंथ शामिल हैं।
हमारे धार्मिक ग्रंथ हमें जीवन का अर्थ समझने में सहायता करते हैं। केवल आवश्यकता है हमें ग्रंथो से मिले उस ज्ञान को अपने आचरण में उतारने और स्मरण में रखने की। ऐसा करने से हमें अंदर की मनोदशा और अंतर् आत्मा भी स्वच्छ हो जाती हैं।
जब भी कभी सनातन धर्म की चर्चा होती है तब चार वेद, 108 उपनिषद, अठारह पुराण, और छः शास्त्र की चर्चा जरूर होती है।
वेद :
वेद प्राचीनतम हिंदू ग्रंथ हैं। ऐसी मान्यता है वेद परमात्मा के मुख से निकले हुये वाक्य हैं। वेद शब्द की उत्पत्ति संस्कृत के ‘विद्’ शब्द से हुई है। विद् का अर्थ है जानना या ज्ञानार्जन, इसलिये वेद को “ज्ञान का ग्रंथ कहा जा सकता है। हिंदू मान्यता के अनुसार ज्ञान शाश्वत है अर्थात् सृष्टि की रचना के पूर्व भी ज्ञान था एवं सृष्टि के विनाश के पश्चात् भी ज्ञान ही शेष रह जायेगा।
वेद को श्रुति भी कहा जाता है, क्योंकि वेद ऋषिओ को ईश्वर द्वारा सुनाए गया ज्ञान है। वेद ज्ञान का अथाह भंडार है, जिसमे मनुष्य जीवन के सभी पहलुओं की धार्मिक और आध्यात्मिक शिक्षाओं का एक बड़ा संग्रह हैं।
वेद संख्या में चार हैं – ऋगवेद, सामवेद, अथर्ववेद तथा यजुर्वेद। ये चारों वेद ही हिंदू धर्म के आधार स्तम्भ हैं।
ऋग्वेद :
ऋग्वेद सनातन धर्म का पहला वेद हे, इसका मूल विषय ज्ञान है। यजुर्वेद, सामवेद और अथर्ववेद यह तीनो की रचना ऋग्वेद से ही हुई है। ऋग्वेद छंदोबद्ध वेद हे, यजुर्वेद गद्यमय वेद हे और सामवेद गीतमय ( गीत-संगीत ) है।
सम्पूर्ण ऋग्वेद में 10 मंडल, 1028 सूक्त है, और लगभग 11 हजार मंत्र है।
ॠग्वेद के कई सूक्तों में देवताओं की स्तुति के मंत्र हैं। ॠग्वेद में अन्य प्रकार के सूक्त भी हैं, परंतु देवताओं की स्तुति करने के स्तोत्रों की प्रमुखता है। पुरुषसूक्त , नासदीय सूक्त, विवाह सूक्त, नदि सूक्त, देवी सूक्त आदि का कथन ऋग्वेद में है। ऋग्वेद के दसवेँ मंडल में औषधिओ का उल्लेख मिलता है।
ऋग्वेद में प्रधान 5 शाखाएँ है। जो निम्नलिखित है।
1. शाकल
2. वाष्कल
3. आश्वलायन
4. शांखायन
5. माण्डूकायन
यजुर्वेद :
इसमें गद्य और पद्य दोनों ही हैं। इसमें यज्ञ कर्म की प्रधानता है। प्राचीन काल में इसकी 101 शाखाएं थीं परन्तु वर्तमान में केवल पांच शाखाएं हैं - काठक, कपिष्ठल, मैत्रायणी, तैत्तिरीय, वाजसनेयी। इस वेद के दो भेद हैं - कृष्ण यजुर्वेद और शुक्ल यजुर्वेद।
सामवेद :
इसमें गान विद्या का भण्डार है, यह भारतीय संगीत का मूल है। ऋचाओं के गायन को ही साम कहते हैं। इसकी तीन ही प्रचलित शाखाएं हैं - कोथुमीय, जैमिनीय और राणायनीय। सामवेद में कुल 1875 मंत्र हैं। इसमें अधिकतर मंत्र ऋग्वेद से लिए गए हैं।
अथर्ववेद :
इसमें गणित, विज्ञान, आयुर्वेद, समाज शास्त्र, कृषि विज्ञान, आदि अनेक विषय वर्णित हैं। कुछ लोग इसमें मंत्र-तंत्र भी खोजते हैं। यह वेद जहां ब्रह्म ज्ञान का उपदेश करता है, वहीं मोक्ष का उपाय भी बताता है। इसे ब्रह्म वेद भी कहते हैं। इसमें मुख्य रूप में अथर्वण और आंगिरस ऋषियों के मंत्र होने के कारण अथर्व आंगिरस भी कहते हैं। यह 20 काण्डों में विभक्त है। प्रत्येक काण्ड में कई-कई सूत्र हैं और सूत्रों में मंत्र हैं। इस वेद में कुल 5977 मंत्र हैं। इसकी दो शाखाएं शौणिक एवं पिप्पलाद ही उपलब्ध हैं। अथर्ववेद का विद्वान् चारों वेदों का ज्ञाता होता है।
उपवेद :
उपवेद ज्ञान के उन क्षेत्रों को संदर्भित करता है जिन्हें वेदों का सहायक कहा जाता है। आमतौर पर, चार उपवेद सूचीबद्ध किए जाते हैं, जिनमें से प्रत्येक एक विशिष्ट वेद से जुड़ा होता है:
- आयुर्वेद चिकित्सा से संबंधित है और ऋग्वेद से जुड़ा है।
- धनुर्वेद तीरंदाजी से संबंधित है और यजुर्वेद से जुड़ा है।
- गांधर्ववेद संगीत, नृत्य और रंगमंच से संबंधित है और सामवेद से जुड़ा है।
- अर्थशास्त्र अर्थशास्त्र से संबंधित है और अथर्ववेद से जुड़ा है।
वेदांग :
वेदांग वेदों के अंग हैं। वेदों को समझने के लिए वेदांगों को समझना आवश्यक है। वेदांग छह अनुशासन हैं जो वेदों के अध्ययन को पूरक बनाते हैं:
- शिक्षा संहिता - ग्रंथों के पाठ पर निर्देश प्रदान करती है। इसमें सही उच्चारण, ध्वन्यात्मकता, उच्चारण आदि जैसे विषय शामिल हैं।
- कल्प - अनुष्ठानों और संस्कारों के विभिन्न पहलुओं से संबंधित है। कल्प ग्रंथों को सामूहिक रूप से कल्पसूत्र कहा जाता है। कल्पसूत्र के चार वर्ग हैं:
- श्रौतसूत्र श्रौत यज्ञों, यानी वैदिक संस्कारों से संबंधित है।
- गृह्यसूत्र घरेलू समारोहों से संबंधित है।
- धर्मसूत्र धार्मिक और सामाजिक कानूनों से संबंधित है।
- शुल्वसूत्र अग्नि-वेदियों के निर्माण से संबंधित है।
- व्याकरण - व्याकरण और भाषाई नियमों से संबंधित है।
- निरुक्त - व्युत्पत्ति विज्ञान से संबंधित है। इसमें शब्दों की जड़ें, उत्पत्ति और अर्थ शामिल हैं।
- छंद - छंदशास्त्र से संबंधित है। इसमें वैदिक ग्रंथों के पाठ में इस्तेमाल किए जाने वाले काव्यात्मक छंद शामिल हैं।
- ज्योतिष - समय की गणना से संबंधित है। इसमें आकाशीय पिंडों का अवलोकन और बलिदान के लिए समय की सटीक गणना और निर्धारण के नियम शामिल हैं।
उपनिषद :
आत्मज्ञान, योग, ध्यान, दर्शन आदि वेदों में निहित सिद्धांत तथा उन पर किये गये शास्त्रार्थ (सही रूप से समझने या समझाने के लिये प्रश्न एवं तर्क करना) के संग्रह को उपनिषद कहा जाता है। उपनिषद शब्द का संधिविग्रह ‘उप + नि + षद’ है, उप = निकट, नि = नीचे तथा षद = बैठना होता है अर्थात् शिष्यों का गुरु के निकट किसी वृक्ष के नीचे बैठ कर ज्ञान प्राप्ति तथा उस ज्ञान को समझने के लिये प्रश्न या तर्क करना। उपनिषद को वेद में निहित ज्ञान की व्याख्या है। विषय की गम्भीरता तथा विवेचन की विशदता के कारण १३ उपनिषद् विशेष मान्य तथा प्राचीन माने जाते हैं। जगद्गुरु आदि शंकराचार्य ने १० पर अपना भाष्य दिया है:
- (१) ईश, (२) ऐतरेय (३) कठ (४) केन (५) छान्दोग्य (६) प्रश्न (७) तैत्तिरीय (८) बृहदारण्यक (९) मांडूक्य और (१०) मुण्डक।
उन्होंने निम्न तीन को प्रमाण कोटि में रखा है:
- (१) श्वेताश्वतर (२) कौषीतकि तथा (३) मैत्रायणी।
अन्य उपनिषद् देवता विषयक होने के कारण 'तांत्रिक' माने जाते हैं। ऐसे उपनिषदों में शैव, शाक्त, वैष्णव तथा योग विषयक उपनिषदों की प्रधान गणना है।
पुराण :
वेद में निहित ज्ञान के अत्यन्त गूढ़ होने के कारण आम आदमियों के द्वारा उन्हें समझना बहुत कठिन था, इसलिये रोचक कथाओं के माध्यम से वेद के ज्ञान की जानकारी देने की प्रथा चली। इन्हीं कथाओं के संकलन को पुराण कहा जाता हैं। पौराणिक कथाओं में ज्ञान, सत्य घटनाओं तथा कल्पना का संमिश्रण होता है। पुराण ज्ञानयुक्त कहानियों का एक विशाल संग्रह होता है। पुराणों को वर्तमान युग में रचित विज्ञान कथाओं के जैसा ही समझा जा सकता है। पुराण संख्या में अठारह हैं:
- (1) ब्रह्मपुराण (2) पद्मपुराण (3) विष्णुपुराण (4) शिवपुराण (5) श्रीमद्भावतपुराण (6) नारदपुराण (7) मार्कण्डेयपुराण (8) अग्निपुराण (9) भविष्यपुराण (10) ब्रह्मवैवर्तपुराण (11) लिंगपुराण (12) वाराहपुराण (13) स्कन्धपुराण (14) वामनपुराण (15) कूर्मपुराण (16) मत्सयपुराण (17) गरुड़पुराण (18) ब्रह्माण्डपुराण।
1. श्लोक: श्लोक दो पंक्तियों से बना एक छंद है, जो आमतौर पर संस्कृत में लिखा जाता है और इसमें काव्यात्मक और लयबद्ध गुण होते हैं। श्लोकों का उपयोग अक्सर दार्शनिक या नैतिक शिक्षाओं को व्यक्त करने, देवताओं या घटनाओं का वर्णन करने या भक्ति व्यक्त करने के लिए किया जाता है। वे आमतौर पर भगवद गीता, रामायण और महाभारत जैसे ग्रंथों में पाए जाते हैं।
2. मंत्र: मंत्र एक पवित्र ध्वनि, शब्द या वाक्यांश है जिसे ध्यान या आध्यात्मिक अभ्यास के दौरान दोहराया या उच्चारित किया जाता है। माना जाता है कि मंत्रों का मन और चेतना पर परिवर्तनकारी और शुद्धिकरण प्रभाव होता है। वे संस्कृत या अन्य भाषाओं में हो सकते हैं और अक्सर विशिष्ट देवताओं या आध्यात्मिक गुणों से जुड़े होते हैं। मंत्रों में आध्यात्मिक शक्ति होती है और इनका उपयोग मन को एकाग्र करने, आंतरिक अवस्थाओं को विकसित करने और आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए किया जाता है।
3. सूत्र: सूत्र एक संक्षिप्त और सूत्रात्मक कथन है जो गहन शिक्षाओं या सिद्धांतों को संक्षिप्त रूप में व्यक्त करता है। सूत्र आमतौर पर संस्कृत में लिखे जाते हैं और पतंजलि के योग सूत्र या ब्रह्म सूत्र जैसे प्राचीन ग्रंथों में पाए जाते हैं। उन्हें याद रखने और मनन करने के लिए बनाया गया है, जो जटिल आध्यात्मिक अवधारणाओं को समझने और उनका अभ्यास करने के लिए एक संक्षिप्त रूपरेखा प्रदान करते हैं।
4. स्तोत्र: स्तोत्र किसी देवता या आध्यात्मिक व्यक्ति को समर्पित एक भजन या भक्ति रचना है। स्तोत्रों का उपयोग अक्सर प्रार्थना, स्तुति या आह्वान के रूप में किया जाता है। वे आमतौर पर श्लोकों से अधिक लंबे होते हैं और उनमें कई छंद हो सकते हैं। स्तोत्र ईश्वर के प्रति भक्ति, कृतज्ञता और श्रद्धा व्यक्त करते हैं और धार्मिक अनुष्ठानों या व्यक्तिगत भक्ति प्रथाओं के हिस्से के रूप में जप या पाठ किए जाते हैं।